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दृष्टान्त छतीसी
श्रीगुरू को शिक्षा वचन, दिल सुध धरि निरभ । हितकारण सबकु हुवै, अड़वडताँ औठंभ ॥ १ ॥ हितूआ हितकारी हुवे, वाकी ही कोइ वैण । पारिख रतन परीखता, निरखें वाकी नैण ।। २ ।। . दूपण दीधैं दुरजणे, ओपे कवित असल्ल । लूअ झलक लागते, आवै स्वाद अवल्ल ॥ ३ ॥ दूजा नै सुख देखिने, निपट दुखी ह नीच । सूकै जव्वासो सही, वरिपा जलरइ वीचि ॥ ४ ॥ ध्रमसी कहै वधते धने, त्रिसना वधै अथाग । धुरथी अधिकी धग-धगइ, ईधन मिलिया आगि ॥ ५ ॥ स्वारथ अपणो ना सधे, मित्र धरेता मेलि । माली फल पाम्या पर्छ, काटे पर ही केलि ॥ ६ ॥ मोटारी पिण पाति मै, नान्है काज कराय । काम पड्ये क्यु कोडिया, नाणा में न गिणाय ॥ ७ ॥ बल इकवीस विश्वा-वधइ, एका बीय आइ । पातें बैसै पाधरा, तोइ बारा बल बोलाय ॥ ८ ॥ मुखी सलामत पातिमै, तो सकजा बोले सर्व । तिण ठामै है सून्यथा, तो गयौ सहूनौ गर्व ॥ ६ ॥