________________
धर्मवद्धन ग्रन्थावली खिसता निज खाण थी, रयण कहै साभलि रोहण । अठं अम्है उपना, महिर थारी मन मोहण । करिजे तु कल्याण, इसी मन मैं मत आणे । ठाम चकवे ठिक्क, ठहरसी किसे ठिकाणे। वास मे जाइ जिग रे वसा, घर री पुण्य दशाधिरै। माह र सुगुण शोभा मुगट, श्रीपति पिण करसी सिरै ।।२३।।
धन गर्व निषेध गरथ तणें गारवे, हुऔ गहिलो विण होली। नेट करें निवलरी ठेक हासी ठकठोली। मन ही मन जाणं मूढ, मूल ए किण री माया । साच कहैं धर्मसीह, छती छवि वादल छाया। उलटी सुलट्ट सुलटी उलट, ए थिति आदि अनादिरी। घडी माहि देखि अरहट्ट घड़ीभरि ठाली ठालीभरी ।। २४ ।।
परोपकार
घडी घडी घड़ियाल, प्रगट सद एम पुकारें । - अवर भर्व ऊंघता, जगिज्यो मनुष्य जमार। दुखिया रे सिर दड, घड़ि घड़ि आयु घटता । काठ सिर करचती, किती इक वार कटंता । तिण हत चेत चेतन चतुर, धर्मसीख सविशेष घर । सह बात सार संसार मे, कोइक पर उपगार कर । २५।। इड़िया जिम गछली, खाइ बैठो मन खौटे। . गिल ढी हीया गोढ, छेहडै आदर छोट ।