________________
जाए तो मानव जाति जीवन में उच्च मूल्यों का साक्षात्कार कर शाश्वत सुख को प्रोर बढ़ सकती है । ग्रतः दशवैकालिक का शिक्षण है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्राणी को न मारे और न ही उसे मरवाये ( २३ ) | सब प्राणियों के प्रति करुणा भाव प्रदर्शित करने की यह शैली महत्त्वपूर्ण सर्जनात्मक आयामों को अपने में समेटे हुए है (२१) । दशवैकालिक के अनुसार यह अहिंसा है ( २१ ) | व्यक्तिगत एवं सामाजिक ( राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्रहण किया गया यह अहिंसा-त्रत व्यक्ति एवं समाज की काया पलट कर सकता है ।
सब प्राणियों के प्रति करुणा की अनुभूति का आधार होता है, उनमें स्व-तुल्य आत्मा का भान होना ( ७, ८) । प्राणियों को श्रात्म-तुल्यता का ज्ञान ग्रहिसा की आधारशिला है । इस संवेदनशीलता के विकास के साथ कि 'सब प्राणियों का सुख-दुःख अपने समान होता है' मनुष्य हिंसा के मार्ग को छोड़ देता है और वह स्वपर हित को समझ लेता है (८)
'सव प्राणियों के प्रति करुणा भाव' (२१) की साधना के लिए हिंसा से दूर होना तथा हिंसा से दूर होने के लिए वस्तुओं के प्रति अनासक्ति का अभ्यास आवश्यक है । अतः दशवैकालिक का कथन है कि अहिंसा, संयम और तप धर्म है (१) । प्राणियों के प्रति करुणा भाव अहिंसा है; हिंसा से दूर रहना संयम है; और वस्तुनों के प्रति अनासक्ति का अभ्यास करना तप है । इस तरह से संयम और तप हिंसा के साधन हैं। यहाँ यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इस सूत्र ( १ ) में साध्य - साधन - रूप पूर्ण जीवन अभिव्यक्त है । इसीलिए जो धर्म अहिंसा, संयम और तप को अपने में गूंथे हुए हैं, वह ही प्राणियों का कल्याण कर सकता है । इसी से मनुष्य स्व-पर
दशवैकालिक ]
[ xv