________________
* चौवीस तीर्थकर पुराण *
warcomercomeramicen
s
Mon
-
-
-
देखने लगी । जव लक्षमीमती और घज दन्तको श्रीमतीके इस हालका पता चला तब वे दौड़े हुए उसके पास आये। उन्होंने उससे मूर्छित होनेका कारण पूछा पर वह कुछ नहीं बोली सिर्फ ग्रह ग्रस्तकी तरह चारों ओर निहारती रही पुत्रीकी वैसी अवस्था देखकर राजा रानीको बहुत ही दुःख हुआ। कुछ देर बाद उसकी चेष्टाओंसे राजा बज दन्त समझ गये कि इसके दुःखका कारण इसके पूर्व भवका स्मरण है और कुछ नहीं । उन्होंने यह विचार लक्ष्मीमतीको भी सुनाया। इसके बाद श्रीमतीको समझानेके लिये एक पण्डित नामकी धायको नियुक्त कर राजा और रानी अपने अपने स्थानपर चले गये।
श्रीमतीके पाससे वापिस आते ही राजाको पता चला कि आयुधशालामें चक्ररत्न प्रकट हुआ है। और पुरीके वाथ उद्यानमें यशोधर महाराजके लिये केवल ज्ञान प्राप्त हुआ है। 'दिग्विजयके लिये जाऊ या यशोधर महाराजके ज्ञान कल्याणके महोत्सव में शामिल होऊ' इन दो विचारोंने राजाकी चित्तवृत्तिको क्षण एकके लिये दो भागोंमें विभाजित कर दिया। पर पहले धर्म कार्यमें ही शामिल होना चाहिये, ऐसा विचारकर राजा वदन्त यशोधर महा राजके ज्ञानोत्सव में शामिल होनेके लिये गये। वनमें पहुंचकर राजाने भक्तिपूर्वक मुनिराजके चरणों में प्रणाम किया और अपना जन्म सफल माना। वहां विचित्र वात यह हुई थी कि राजाने ज्योंही पूज्य मुनिराजके चरणोंमें प्रणाम किया था त्योंही उसे अवधिज्ञान प्राप्त हो गया था। अवधि ज्ञानके प्रतापसे राजा बदन्त अपने तथा श्रीमती आदिके समस्त पूर्वभव स्पष्ट रूपसे जान गये थे । जिससे वे श्रीमतीके विषयमें प्रायः निश्चिन्त हो गये थे। मुनिराजके पाससे वापिस आकर वजदन्त चक्रवर्ती दिग्विजयके लिये गये।
इधर पण्डिता धाय श्रीमतीको घरके बगीचेमें ले जाकर अनेक तरहसे उसका मन बहलाने लगी। मौका देखकर पण्डिताने उससे मूर्छित होनेका कारण पूछा । अबकी बार श्रीमती पण्डिताका आग्रह न टाल सकी, वह बोली सखी ! जब मैं छतपर सो रही थी तव वहाँसे जयजय शब्द करते हुए कुछ देव निकले, उनके कोलाहलसे मेरी आंख खुल गई। जब मेरी निगाह उन देवों पर पड़ी तब मुझे अपने पूर्व भवका स्मरण हो आया । बस, यही मेरे दुःखका