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(३७) भेला न हुवै कोयजी । ते उपजै ने बिललायसी, तिगासु खन्ध किसीपर होयजी ॥ हिव ॥३॥ बर्तमान समों येक कालरो, येक समारो खन्ध नहीं होयजी। ते पिण उपजै ने बिललावसी, कालरो स्थिर द्रव्य नहीं कोयजी ॥ हिव ॥ ३२ ॥ खन्ध बिन देश हुनहीं, खन्ध देश बिन हुवै नहीं प्रदेशजी। प्रदेश अलगो नहीं हुवै खन्धथी, तिणसूपरमाणं नहीं लवलेशजी॥हिव ।। ३३ ॥तिण काल में खन्ध कहो नहीं, बले नहीं कह्यो देश प्रदेशजी । खन्धी छूट अलग पडयां बिना । पर्माणूंनो कोण गिणे शजी ॥ हिब ॥ ३४ ॥ कालरो मांपो थाप्यो ती. थैकरां, चंद्रमांदिकरी चालतूं विख्यातनी । ते चाल सदा काल सास्वती, घटै बधै नहीं तिल मातजी ॥ हिव ॥ ३५ ॥ तिणसूं मांपो तीर्थकरां बांधीयो, जघन्य समय स्थाप्यो येकजी । एजघन्य स्थिति कालरा द्रव्यरी, तिणथी अधिकरा भेद अनेकजी ।। हिव ॥ ३६॥ असंख्याता समयरी थापी श्रावलिका, पछै महूरत पहोर दिन रातजी। पक्ष मास अयन ऋतु स्थापिया, दोय अयनरो वर्ष विख्यातजी ॥ हिव ॥ ३७ ॥ इम कहतां २