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जाणों इण न्यायजी ॥ हिव ॥ २४ ॥ तिण काल द्रव्य नहीं सास्वतो, उपजै जेम प्रवाहजी । समों उपजै ते विणसै सही, तिणरो कदेह न श्रावै छै थाहजी ॥ हिव ॥ २५ ॥ सूर्य में चंद्रमा दिकरी चालसें, समो निपजै दग चालजी। निपजवा लेखे तो काल सास्वतो, समयादिक सर्व अद्धकालजी ।। हिव ॥ २६ ॥ येक समों निपजी. ने बिणस गयो। पछै दूजो समों हुश्रो ताहायजी। दूजो विणस्यां तीजो निपजै, इम अनुक्रमें निपजता जायजी ॥ हिव ।। २७ ॥ काल वैतै अढाई. द्वीपमें, अढाई द्वीप वारै काल नाहिजी । अढाई द्वीप बारला जोतपी, येक ठाम रहै छै त्याहिजी ।। हिव ॥ २८ ॥ दोय समयादिक भेला हुवै नहीं, तिणसू कालने खन्ध न करो जिन रायजी। खन्ध तो हुबै घणारा समुदायथी, समुदाय बिन खन्ध नहीं थायजी ।। हिच ।। २६ ॥ गये काल: अनन्ता समया हुश्रा, ते येकग भेला नहीं हुधा कोयजी । येतो ऊपजैनेंतिम बिणसे गया, तिणरो खन्ध किहांथकी होयजी ।। हिव ॥ ३० ॥ श्रागमियें काल अनन्ता समां हुसी, ते पिण येकला