________________
S
utttttatatat tattikkakakakakakakirt tertatition
९६ कविवरवनारसीदासः ।।
Httikokottotkikikokutiktattatokterkiktatatatitutkukkukutekkkettitutiktutton
शेषजीवन। पूर्वमें कह चुके है कि, कविवर वनारसीदासजीकी जीवनी ।। संवत् १६९८ तककी है । इसके पश्चात् वे कब तक संसारमें रह क्या २ कार्य किये ? प्रतिज्ञानुसार अपनी शेष जीवनी लिखी कि, नहीं? अन्य नवीन अन्योंकी रचना की कि नहीं ? आदि अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं, परन्तु इनका उत्तर देनके लिये हमारे अनिकट कोई भी साधन नहीं है। और तो क्या हम यह भी निश्चय
नहीं कर सक्ते कि, उनका देहोत्सर्ग कब और किस स्थानमें हुआ ? यह बड़े शोककी बात है।
पाठकगण जीवनचरित्रका जितना भाग उपरि पाठ कर चुके हैं, उसपर यदि विचार किया जाये, तो निश्भय होगा कि, वह समय उनकी आपत्तियोंका था। उस ५५ वर्षके जीवनने उन्हें बहुत थोड़ा समय ऐसा दिया है, जिसमें वे सुखसे रहे हों । बहुत * थोडे पुरुषोंके जीवनमें इस प्रकार एकके पश्चात् एक, अपरिमित * आपतियें उपस्थित हुई हैं। इस ५५ वर्ष की आयुके पश्चात् मोहके उपांत होने पर उनके सुखका समय आया था, मानो विधाताने उनके जीवनके दुःख सुखमय दो विभाग खयं कर दिये थे और इसी लिये कविवरने इस प्रथम जीवनको पृथक् लिखनेका प्रयास किया था । आश्चर्य नहीं कि दूसरे सुखमय
kkukurkuttitutatutetitutkukkukkutikatnutetriuratituttitutekirtuttituttttar
१'बनारसीविलास' कविवरकी अनेक रचनाओंका संग्रह है। उसमें "कर्मप्रकृतिविधान" नामक सबसे अन्तिम कविता है, जो संवत् १७०० के फाल्गुणकी रची हुई है । इसके पश्चातकी कोई भी कविता प्राप्य नहीं है। इससे यह भी जाना जाता है कि, कदाचित कविवरका सुखमय जीवन १०-५ वर्षसे अधिक नहीं हुआ हो।