________________
Httirthkrt.ttattottatatuistekstartstart.tattitute
जैनग्रन्यरक्षाकरे
मजीवनको भी उन्होंने हम लोगों के लिये लिखा हो । परन्तु वह आज हमको प्राप्त नहीं है । यह हम लोगोंका अभाग्य है।
इतिहास लिखने में जनश्रुतियां भी साधनभूता है। क्योंकि अनेक इतिहासोंके पत्र केवल जनश्रुतियोंके आधार पर ही रंगे जाते में हैं। कविवरके जीवनकी अनेक जनश्रुतियां प्रचलित हैं। परन्तु अ
नुमानसे जाना जाता है कि, वे सब प्रथम जीवनके पश्चातकी है, इसलिये हम उन्हें शेषजीवनमें सम्मिलित करना ठीक समझते हैं ।
१ शाहजहां बादशाहके दरवारमें कविवर वनारसीदासजीने । बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। बादशाहकी कृपाके कारण उन्हें प्रतिदिन दरवारमें उपस्थित होना पड़ता था और महमें जाकर प्रायः निरन्तर सतरंज खेलना पड़ती थी । कविवर सतरंजके बड़े खिलाड़ी थे । कहते हैं कि, बादशाह इनके अतिरिक्त किसी अन्यके साथ सतरंज खेलना पसन्द ही नहीं करते थे । वादमा जिस समय दौरेपर निकलते थे, उस समय भी वे कविवरको साथम रखते थे । तव अनेक राजा और नयाव खूब चिढ़ते थे, जब वे एक साधारण वणिकको वादशाहकी बराबरी पर बैठा देखते थे, और अपनेको उससे नीचे । संवत् १६९८ के पश्चात् कवित्ररका । मोह उपशान्त होने लगा था, ऐसा कथानकमें कहा गया है । और हम जो कथा लिखते हैं, वह उसके भी कुछ पीछे की है, जब कि, उनके चरित्र और भी विशद हो रहे थे, और जब वे अष्टांग सम्यक्त्वकी धारणा पूर्णतया कर रहे थे। कहते हैं कि उस समय कविवरने एक दुर्धर प्रतिज्ञा धारण की थी। अर्थात् उन्होंने संसारको तुच्छ समझके यह निश्चय किया था कि, मैं
Stattrt.ketrketstatutitutituttitutituttitut.ttitutetatutituteketitutetnt.tituttarti
१ सतरंजपर कविवरने अनेक कवितायें लिखी हैं।