________________
जैनग्रन्थरत्नाकरे
म.krkikitrkukkukkutekakakikulkrkakukuteketakutkuketikokutekekat.kukuktak-ket.tkukkukukrketi
उपसंहार। * कयहूं दोष कबहुँ गुन कोय। जाको उदय नु परगट होय से यह बनारसीजीकी बात । कही थूल जो हुती विख्यात
और जो सूच्छम दशा अनंत । ताकी गति जाने भगवंत जे जे बातें सुमिरन भई । तेते वचनरूप परिनई ॥ जे बूझी प्रमाद इहि माहिं । ते काहपै कहीं न जाहिं ॥ अल्प थूल भी कहै न कोय । भाषै सो जु केवली होय ॥
एक जीवकी एकदिन, दशा होत जेतीक। • सो कहि सके न केवली, यद्यपि जाने ठीक ॥ मनपरजय अरु अवधिधर, कहि अल्प नितीन हमसे कीटपतंगकी, वात चलावै कौन ॥ ताते कहत बनारसी, जीकी दशा रसाल । कछू थूलमें थूलसी, कही पहिर विवहार। वरस पंच पंचासलों, भाल्यो निज चिरतंत ॥ आगे भावी जो कथा, सो जाने भगवंत ॥ वरस पंचावन ए कहे, बरल बचावन और। चाकी मानुप आयुमें, यह उतकिणी दौर ॥ घरस एकसौ दश अधिक, परमित मानुष आव । सोलह सौ अष्टानवे, समय वीच यह भाव ॥
ताते अरधकथान यह, यानारसीचरित्र । ॐ दुष्ट जीव सुन हँसहिंगे, कहहिं सुनहिंगे मित्र ॥
statutetst.titutitutetntst.titutekstitutstatetituteketstetzatitutitutttitutek