SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ tetatututetet e kontinuitet retorikateterita tentar tenter intretention to top १७. कविवरबनारसीदासः । ment turbekretetettnete tretettekredit to treat startettettstett keretett साथ अपने घर ले गया। तथा “आप लोग मार्ग भूल गये हैं, रात्रिभर विनाम कर लें, प्रातः आपको रास्ता बतला दिया जावेगा। इस प्रकार वचनामृत कहके संतोषित किया । सशंकितचित्त मित्र चौधरीके घर ठहर गये । जव चौधरी अपने शयनागारमें चला गया, तब तीनोंने सूत वटकर जनेऊ बनाकर धारण किये और मिट्टी घिसके मस्तक त्रिपुण्डोंसे सुशोभित किये । यथा माटी लीन्हीं भूमिसों, पानी लीन्हों ताल । विप्रवेष तीनों धरयो, टीका कीन्हों भाल ॥ ४२४ ॥ नानाप्रकारको चिन्ताओंमें रात विताई । सूरज निकलनेके पहिले ही हयारूढ़ चौधरीने आकर प्रणाम किया । विप्रोंने आशिष दी, और बोरिया बसना बांदके तीनों साथ हो गये। तीन कोस चलनेपर फतहपुरकी रास्ता मिलगई, तब चौधरी तो शिष्टाचारपूर्वक अपने घरको लौटा, और ये दो कोस चलने पर फतहपुर मिला, वहां दो मजदूर करके इलाहावास गये । सरायमें डेरा लिया। गंगाके तट पर रसोई बनाके भोजन किये । पश्चात् वनारसीदासजी घूमने लिये नगरमें निकले । एक स्थानमें अचानक पिता खरगसेनजीके दर्शन हो गये । पुत्र पिताके चरणोंसे लपट गया, परन्तु पिताका चिरपुत्रवियोगी हृदय इस अचानकसम्मिलनको सह न सका, खरग- सेनजीको तत्काल ही मूर्छा आ गई ! 1 बनारसीदास और नरोचमदास दोनों एक डोली भाडे करके और उसमें खरगसेनको सवार कराके जौनपुर आये। फिर जौनपुरमें दो चार दिन ठहरके व्यापारके लिये बनारस आये। बनारस जाकर पार्श्वनाथ परमेश्वरकी पूजन की । इस समय हार्दिक Htttttisstitutikattattatuteketitutikattitutitutitutetitutatutotkettitutatute etic tre
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy