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जैनग्रन्थरत्नाकरे ६१ * करनेके लिये मृगावती और मधुमालती नामक पुस्तकोंको डेरमें
बैठे हुए पढा करते थे। पोथियोंको सुननेके लिये दो चार रसिकपुरुष भी पास आ बैठते थे, और प्रसन्न होते थे। श्रोताओंमें एक कचौडीवाला था, उसके यहांसे आप प्रतिदिन दोनों वक्त कचौडी उधार लेके खाया करते थे। जब उधार खाते २ बहुत दिन बीत गये, तब एक दिन पोथी सुनकर जाते हुए कचौडीवालेको एकान्तमें बुलाकर लज्जित होते हुए आपने कहा कि,
तुम उधार कीन्हों वहुत, आगे अब जिन देहु । मेरे पास कछू नहीं, दाम कहांसों लेहु ॥
मृगावती यह एक कल्पित क्या है । इसके बनानेवाले कविका नाम कुतुवन था । फुतवन जातिके मुसलमान थे और विक्रम संवत् ।। १५६० के लगभग विद्यमान थे । शेख चुरहानके दो चेले थे, एक कुतुबन और दूसरा मलिक मुहम्मदजायसी । ये दोनों ही हिन्दी अच्छे कवि हो गये हैं । मलिक मुहम्मदजायसीका पद्मावतकाव्य हिन्दीमें एक उत्कृष्ट श्रेणीका ग्रन्थ है । यह काव्य मृगावतीले ३७ वर्ष पीछे बनाया गया है । मृगावतीको कथा जिस प्रकार देव और परियोंकी असम्भववातोसे भरी है, उस प्रकार पद्मावतकी कथा नहीं हैं। पद्मावत ऐतिहासिक कथाके आधारपर लिखा गया है, और मृगावती केवल कल्पनाका प्रवन्ध है । परन्तु मृगावती कल्पितप्रवन्ध होने पर भी * सुन्दरता और सरलतासे कूट १ कर भरा है, इससे रसिकोंका जीउसे बिना पढ़े नहीं मानता। विपत्तिके समय कविवर के चित्तको इससे अवश्य विश्राम में मिलता होगा । कुतुबन जौनपुरके वादशाह शेरशाहसुरके पिता हुसे. नशाहके आश्रित थे, ऐसा समालोचक भाग ३ अंक २७-२८-२९ में , प्रकाशित हुआ है, परन्तु शेरशाहको हुसेनशाहल वेटा बतलानेने भूल
हुई जान पड़ती है। क्योंकि शेरशाहका बीनपुरके हुसेनगाहसे कुछ HTTARS
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