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कविवरवनारसीदासः।
कचौरीवाला मला आदमी था, वह जानता था कि, बनारसीदास कोई अविश्वस्त पुरुष नहीं है, किन्तु एक विपत्तिका मारा हुआ व्यापारी है। उसने कहा कि, कुछ चिन्ताकी बात नहीं है। आप उधार लेने जावें, मेरे द्रव्यकी परवाह न करें, और जहां जी चाहे, आवे जावें । समयपर मेरा द्रव्य वसूल हो जावेगा । इस सजनकी बातका बनारसीदास और कुछ उत्तर न दे सके, और पूर्वोक्त क्रमसे दिन काटने लगे । छह महीने इसी दशाम बीत गये। एक दिन मृगावतीकी कथा सुननेको ताबीताराचन्दनी नामके एक पुरुप आये। यह रिश्तमें बनारसीदासजीके श्वसुर होते थे। कथाके हो चुकनेपर उन्होंने बनारसीदासजीसे पहिचान निकालके वडा नेह प्रगट किया और एकान्तमें ले जाके प्रार्थना की कि, कल प्रभातकाल सम्बन्ध नहीं था । वह शूर जातिका पान था और उसका असली नाम फरीद, वापका हसन और दादाका इब्राहीम या। इब्राहीम घोडाका व्यापार करता था, परन्तु उसका बेटा हसन व्यापार छोडके सिपाही चना और बहुत दिनातकरायमल शेखावतकी नौकरी करता रहा। वहाँसे मुलतान सिकन्दर
लोदीके अमीर नसीरखांके पास नौकर रहा । फरीद धापसे स्टकर पहिले । लोदी पठानों और फिर वायरयादशाहके मुगल अमीरीके पास रहा । वावरने इसकी आँखों में फसाद देखकर पकडनेका हुक्म दिया, जिससे वह भागकर सहस्रमके जंगलोंमें लूट मार करने लगा। फिर विहार और गालेका मुल्क दबाते २ हुमायू बाहशाहसे लड़ा और उनको निकालकर संवत् १६९७ में हिन्दुस्थानका पादशाह बन वैध ।
२ मधुमालती हमारे देखनेमें नहीं आई, इसके बनानेवाले कवि चतुर्भुजदासनिगम (कायस्थ) है । इस ग्रन्थकी रचना भी संवत् १६०० के लगभग हुई जान पडती है । मधुमालतीको लोकसंख्या १२०० का है। कहते हैं कि, यह एक प्राचीनपद्धतिका पद्यवन्ध उपन्यास है।
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