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जनप्रन्यरवाकरे
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भागनबालोंके माथी हुए, यार लछमनपुर, नागा सामने जर्ग * लछमनदासनीक आश्रयसे जा टहरे और यियत्तिके दिन गिनने लगे।
सलीम शाहजादा जानपुरके पास आ पहुंचा, परन्तु जब गामती उतरने दगा, और यह विग्रह देखा तो कुछ मितित हुआ
और अपने वकील लालवेग नग्मसुलतानके पास भेजा। वकीलने सुलतानके पास जाकर दा पांच नर्म गर्म बातें कहीं।
और शाहजादक पास उस ले आया । नुम्मसुलतान शाहजादेव परोपर पड़ गया, तब शाहजादेने गुनह माफ करके अभयदान दिया। नगरमें फिर शान्ति हो गई, मांग हुए अंग पुनः आ गये । मुरमसनजी भी ६-७ दिन लछमनपुरमें रहकर लौट आये, और अपने व्यवसायमें निरत हो गये।
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१ यह विग्रह क्यों किया गया? इसका फल क्या हुआ? चार शाहजादा से नान गया ! तुजकजहांगीरीची भूमिका में जी हाल जहांगीर यादशाहकी युवराजावस्थाका लिखा है, उससे इन प्रश्नों का समाधान हो गया है। ४. उसमें लिखा है कि, तारीख महर सन् २००५ (आगोजयदी १४ बन् १६५५) को अकबर वादगाह तो दरसन फतह करनेके दिये गये
और अजमेरका सूबा शाहसलीमको जागीरमें देर रानाले गर मा करनेका हुक्म दे गये । शाहकुलीचसा महरम और राजा मानसिंह
की नोकरी इनके पास बोली गई यंगालका सया जो गजाको सापामा भा, राजा अपने बढे ३ जगतसिंहको सौंपकर शाहरी नितमें रहने लगा।
शाहसलीमने अजमेर आकर अपनी पोज रानार कार भेजी - और कुछ दिनों पीछे आप भी शिसार मरते हुए, उदयपुर गरे । जिसको राना छोड गया था, और सिपाहियों को पहारों में भेजाररानाक पकाउनेको योशिमा करने लंग।
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