________________
कविचरवनारसीदासः ।
प्रकार शांति है । खरगसेनजी सकुटुम्ब जौनपुर चले आये । अन्य जोहरी आदि जो भाग गये थे, वे भी सब आ गये थे, और जौनपुर फिर न्यों का त्यों आबाद हो गया था। सब लोग अपने २ कृत्यमें लग गये, और प्रायः एक वर्षतक जौनपुर में शान्ति रही। यह | समय संवत् १६५६ का था । इसके घोडे दिन पीछे ही एक नवीन विपति आई ।
४०
W
I
अकचरका शाहजादा सलीमशोह जो पीछे जहांगीर के नामसे विख्यात हुआ, कोल्हूवनकी आखेटको निकला था । कोल्हूचन जौनपुर के पास है | जौनपुर के नूरमसुलतान के पास इसी समय शाहीफरमान आया कि, शाहजादा तुम्हारे तरफ आ रहा है, कोई ऐसा उपाय करो, जिसमें उसका कोल्हूवनका जाना चन्द्र हो जावे । नूरमसुलतानने शाहीफरमान सिरपर चढ़ाया, और एक विचित्र उपाय बनाया। जहां तहांके सब मार्ग रोक दिये । शहरके आवागमनके दरवाजे बन्द करा दिये । गौमतीमें नौकायें चलाना बन्द करा दी, और आप गढ़में जाके बैठ गया। बुजापर तोप चढवा दीं । बन्दूक गोलीबारूदोंका भंडार खोल दिया । इस प्रकार विग्रहका ठाठ देखके प्रजाने भागना प्रारंभ किया । कुछ समझदार धनाढ्य लोगोंने मिलकर सुलतानसे प्रार्थना की, परन्तु उसका कुछ फल नहीं हुआ, इसलिये वे लोग भी भागे । और घोडे ही समय में वह महानगर ऊजड़ हो गया । खरगसेनजी भी सकुटुम्ब
T
१ सुलतान सलीमको वापने ६ मुहर्रम सन १००८ (आसोजवदी १४ संवत् १६५५) को राना अमरसिंहके ऊपर जानेका हुक्म दिया था, मगर वह बागी होकर इलाहाबास चला गया और फिर वागी ही रहा।
२ नूरमसुलतान कुलीच के पीछे जोनपुरका हाकिम हुआ था ।