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१२४६ जैनग्रन्थरत्नाकरे
लेखै । जे समाधिसौं लखै अखंडित, ढके न पलक निमखे, । ॐ भौंदू भाई ० ॥६॥ जिन आंखिनकी ज्योति प्रगटके, इन आखिनमें भासै । तब इनहूकी मिटै विपमता, समता रस पर गासै, भौंदू माई० ॥ ७॥ जे आंखें पूरनस्वरूप धरि, लोका
लोक लखावै । ए वे यह वह सब विकलप तजि, निरविकल्प है। - पदपावै, भौंदू भाई ० ॥ ८॥
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राग काफी। तू भ्रम भूल ना रे प्रानी, तू० टेक । धर्म विसारि विषयमुख सेवत, वे मति हीन अज्ञानी, तू भ्रम० ॥ १॥ तन धन सुत । जन जीवन जोबन, डाम अनी ज्यों पानी, तू भ्रम० ॥२॥ देख दगा परतच्छ 'वनारसि' ना कर होड़ विरानी, तू म० ॥३॥
(२१)
पुनः राग काफी। चिन्तामन स्वामी सांचा साहिब मेरा, शोक हरै तिहुं लोकको, उठ लीजतु नाम सवेरा, चिन्तामन० ॥ १ ॥ सूरसमान है उदोत है, जग तेज प्रताप घनेरा। देखत मूरत भावसौं, मिट जात मिथ्यात अंधेरा, चिन्तामन स्वामी० ॥ २ ॥ दीनदयाल निसेवारिये,दुख संकट जोनि बसेरा । मोहि अभयपद दीजिये, फिर होय नहीं भवफेरा, चिन्तामन० ॥ ३॥ विंव विराजत आगरे,
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