________________
१३४ कविवरवनारसीदासः ।
.waman merament संवत् १६४८ में पुत्र संग्रहगीरोगसे असित हुआ। मातापिताके शोकका ठिकाना न रहा । ज्यों त्यों मंत्र यंत्र तंत्रोंके प्रयोगोंसे संग्रअहणी उपशान्ति हुई कि, शीतलाने आ घेरा । इस प्रकार १ वर्षक।
लगमग बालक अतीय कष्टमें रहा । शीतला शान्त होनेपर उक्त बालककी पीठपर एक बालिकाका जन्म हुआ।
संवत् १६५० में बालकने चटशालामें जाकर पांडे रूपचन्दजीके पास विद्या पढ़ना प्रारंभ किया। पांडे रूपचन्दजी अध्यात्म विद्वान और प्रसिद्ध कवि थे। उनका बनाया हुआ पंचमंगलपाठ एक हृदयग्राही श्रेष्ठ काव्य है । सारे जनसमाजमें इसका प्रचार है। जैनी मात्रको यह कंठस्थ रहता है। बालककी बुद्धि बहुत तीक्ष्ण थी, वह दो तीन वर्ष में ही अच्छा व्युत्पन्न हो गया।
जिस समयका यह इतिहास है, उस समय मुसलमानों का प्रतापसूर्य मध्याहमें था, उनके अत्याचारोंके भयसे देशमें बालविवाहका प्रचार विशेषतासे हो रहा था। अतएव ९ वर्षकी वयमें अर्थात् । संवत् १६५२ में खैराबादक शेठ कल्यानमलजीकी कन्याके साथ बालककी सगाई कर दी गई । संवत् १६५३ में एक बड़ा भारी दुष्काल पड़ा, लोग अन्नकेलिये बेहाल फिरते दिखाई दिये। अतः इस वर्ष विवाह नहीं हुआ । जव दुष्काल कमर से शांत हो गया, तव संवत् १६५४ में माघ सुदी १२ को धनारसीदासकी बरात खैराबादको गई । विवाह शुममुहूर्तम मानन्दके साथ हो गया । वरात लौटके घर आ गई । जिस दिन वरात घर आई । उसदिन खरगसेनजीके एक पुत्रीका और भी जन्म हुआ,
उसी दिन वृद्धा नानीने कूच कर दिया! कवि कहते हैं,* नानीमरन सुताजनम, पुत्रवधू आगौन।
तीनों कारज एक दिन, भये एक ही मौन ॥ १०॥ मल्लललललललललल्लामा
tatuteketakitatutektakikateket-titikatnaksi kankrtistkuttekt.
kistatutott