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जैनग्रन्थरलाकरे ३३१ meroin am ..mra rm ..... . ... रोहिनि त्रितिय चरनयनुसाररावरगसन घर मुत अवतार! में दोनों नाम विक्रमाजीत । गावहिं कामिनि मंगलगीत ॥ भू पुत्र जब छह सात महीनेका हुआ, तब वरगसेन सकुटुम्ब पा.
नायकी यात्राको काशी गये । भगवत्की भावपूर्वक पूजन करके उनके चरणोंके समीप पुत्रको डाल दिया और प्रार्थना की,चिरंजीवि कीजे यह याल। तम शरणागतके रखपाल। १. इस वालकपर कीजे दया । अव यह दास तुम्हारा भया ८८ है
प्रार्थना करते समय मन्दिरका पुजारी यहां खड़ा था। उसने थोड़ी देर कपटरूप पवनसाधने और मौनधारण करने के पश्चात् कहा कि, पार्श्वनाथ भगवानका यक्ष मेरे ध्यानमें प्रत्यक्ष हुआ है,
उसने मुझसे कहा है कि, इस बालककी ओररेर कोई चिन्ता न १ करनी चाहिये । परन्तु एक कठिनता है, सो उसके लिये कहा है किजो प्रभु पार्वजन्मको गांव । सो दीले बालकको नांच॥९॥ तो बालक चिरजीवी होय । यह कहि लोप भयो सुर सोय॥
खरगसेनने पुजारीके इस मायाजालको सत्य समदा लिया और प्रसन्न होकर पुत्रका नाम बनारसीदास रख दिया। यही वनारसीदास हमारे इस चरित्रके नायक है।
वाल्यकाल । । हरपित कदै कुटुम्ब सब, स्वामी पास सुपास। 1 दुहुँको जनम बनारसी, यह बनारसीदास ॥९॥
बालक बड़े लाद चायके साथ पढ़ने लगा । मातापिताका पुन: पर निःसीम प्रेम था । एक पुत्रपर किस मातापिताका अंग नहीं होना PERMINATERTAITREATREATERI
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