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asketaket totkati totket-tttttattattiatatatar १३२ कविवरवनारसीदासः ।
पनिक लाला रामदासजी अग्रवाल के साथ सांझे जवाहिरात का अदा करने लगे। 1 संवत् १६३५ में एक पुत्र उत्पन्न हुआ, परन्तु आठ दश दिन जीवित रहके अपनी घाट लग गया । पुनके मरनेका सुरगसेनको बहुत शोक हुआ। थोड़े दिनके पीछे पुत्रलाभकी इच्छासे वे रोहतकपुरकी सती की यात्रा करनेको सकुटुम्ब गये। परन्तु । माग्यके फेरसे मार्गमे चोगेने सर्वस्व लूट लिया, एक फूटी काडी भी पास में नहीं रही। दम्पती बड़ी कठिनतासे अपने शरीरको
लेकर घर लौटके आये। कविवर कहते हैं१ गये हुते मांगनको पूत । यह फल दोनों सती अमत प्रगट रूप देखें सब सोग । तऊ न समुझे सूरखलोग ॥
खरगसेनके नाना मदनसिंघजी बहुत वृद्ध हो गये थे, इसलिये उन्होंने सब कार्य सुरगसेनको सौंप दिया था, और आप शान्तिमावसे कालयापन करते थे । संवत् १६४१ में शान्तिमायके में साथ उनका शरीर छूट गया । नानाकी मृत्युके दो वर्षके पश्चात् भी अर्थात् सवत् १६४३ में खरगसेननी पुत्रलाभकी इच्छासे फिर असतीकी यात्राको गये । अबकी बार कुगल हुई कि, आनन्दसे लौट है।
आये । और थोड़े दिनके पीछे उनकी मनकामना मी पूर्ण हो। गई। आठ वर्षके पश्चात् पुत्रका मुंह देखा, इस लिये सविशेष आनन्द मनाया गया । दम्पति सुखसमुद्रमें गोते लगाने लगे। पुत्रका जन्मकाल और नाम नीचेके पघसे प्रगट होगा,संवत् सोलह सौ ताल । माधमास सितपक्ष रसाल। एकादशी वार रविनन्द । नखत रोहिणी घृषको चन्द ॥
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