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बनारसीविलासः २२९ में करि वर्द्धमानरूप मई तव पूर्ण जथाख्यात प्रगट कहायो ।
विशुद्धताकी जु ऊर्द्धता बहै बाकी शुद्धता। ___ और सुनि जहां मोक्षमार्ग साध्यौ तहां कहा कि 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' और यौँ भी कयौ कि ।
ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्ष ताको विचार-चतुर्थ गुणस्थानकस्यु । लेकरि चतुर्दशम गुणस्थानकपर्यन्त मोक्षमार्ग कयौ ताकौ । व्यौरौ, सम्यक्प ज्ञानधारा विशुद्धरूप चारित्रधारा दोऊ । धारा मोक्षमार्गको चली सु ज्ञानसौं ज्ञानकी शुद्धता क्रियासौं । क्रियाकी शुद्धता । जो विशुद्धतामैं शुद्धता है तो जथाख्यात रूप होत है । जो विशुद्धतामैं ता न होती तो ज्ञान गुन शुद्ध होतो क्रिया अशुद्ध रहती केवली विषै, सो यौं तौ । नहीं वामैं शुद्धता हती ताकरि विशुद्धता भई । इहां कोई कहैगो कि ज्ञानकी शुद्धताकरि क्रिया शुद्ध भई सो यों है नाहीं । कोऊ गुन काहू गुनके सारै नहीं सब असहाय रूप है। और भी सुनि जो क्रियापद्धति सर्वथा अशुद्ध होती तो अशुद्धताकी एती शक्ति नाहीं जु मोक्षमार्गको चलै ताः । विशुद्धतामैं जथाख्यातको अंश है तातै वह अंश क्रम क्रम * पूरण भयौ । ए भइया उटकनावारे--- विशुद्धतामै शुद्धता ॐ मानी कि नाही. जो तो मैं मानी तौ कछु और कहिवेको * कार्य नाहीं । जो तें नाहीं मानी तौ तेरौ द्रव्य याहीभांतिकौ । है परनयौ है हम कहा करि हैं जो मानी तौ स्याबासि । यह से तो द्रव्यार्थिककी चौमंगी पूरन भई। . .
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