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२३० जैनग्रन्थरत्नाकरे
निमित्त उपादान शुद्ध अशुद्धरूप विचार। अब पर्यायार्थिकफी चौभंगी सुनौ एक तो वक्ता अज्ञानी । श्रोता भी अज्ञानी, सो तौ निमित्त भी अशुद्ध उपादान भी अशुद्ध । दूसरो वक्ता अज्ञानी श्रोता ज्ञानी सो निमित्त अशुद्ध और उपादान शुद्ध । तीसरो वक्ता ज्ञानी श्रोता अई ज्ञानी सो निमित्त शुद्ध उपादान अशुद्ध । चौथो-वक्ता * ज्ञानी श्रोता भी ज्ञानी सो तो निमित्त मी शुद्ध २ उपादान भी शुद्ध । यह पर्यायाधिककी चौभंगी साथी ।
इति निमित्तउपादान शुद्धाशुदलपविचार वनिता.
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* अथ निमित्तउपादानके दोहे लिख्यते ।
दोहा। गुरुउपदेश निमित्त विन, उपादानवलहीन ।
ज्यों नर दूजे पांव विन, चलवेको आधीन ॥ १ ॥ ॐ हौं जान था एक ही, उपादानों कान | थक्कै सहाई पौन विन, पानीमाहि जहाज ॥ २॥
__ दोनों दोहोंका उत्तर, ॐ ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिवमगधार ।
___ उपादान निहचै जहाँ, तह निमित्त व्योहार ॥३॥ ३. उपादान निन गुण जहाँ, तहँ निमित्त पर होय ।
भेद ज्ञान परवान विधि, विरला बुझे कोय ॥ ४ ॥