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१२२४ जैनग्रन्थरलाकरे अथ उपादान निमित्तकी चिट्ठी लिख्यते
प्रथम हि कोई पूछत है कि निमित्त कहा उपादान कहा है। से ताकौ ब्यौरौ-निमित्त तौ संयोगरूप कारण, उपादान बस्तुकी सहन शक्ति ।ताको ब्यौरो-एक द्रव्यार्थिक निमित्त उपादान, एक पर्यायार्थिक निमित्तउपादान, ताको व्यौरो--- ॐ द्रव्यार्थिक निमित्त उपादान गुनभेदकल्पना । पर्यायार्थिक निमित्त उपादान परजोगकल्पना. ताकी चौमंगी. प्रथम ही है गुनभेद कल्पनाकी चौमंगीको विस्तार कहौं सो कैसें,-ऐसेसुनौ—जीबद्रव्य ताके अनन्त गुन, सब गुन असहाय खाधीन सदाकाल । तामैं दोय गुण प्रधान मुख्य थापे, तापर चौ३ भंगीको विचार एक तौ जीवको ज्ञानगुन दूसरो जीवको चारित्रगुन ।
ए दोनौं गुण शुद्धरूप भाव जानने । अशुद्धरूप भी जानने यथायोग्य स्थानक मानने वाको व्यौरो-इन दुई
की गति न्यारी न्यारी, शक्ति न्यारी न्यारी, जाति न्यारी न्यारी, सत्ता न्यारी न्यारी ताको व्यौरौ, ज्ञानगुणकी तौ ॐ ज्ञान अज्ञानरूप गति, स्वपरप्रकाशक शक्ति, ज्ञानरूप ॐ तथा मिथ्यात्वरूप जाति, द्रव्यप्रमाण सत्ता, परंतु एक वि
शेष इतनौ जु ज्ञानरूप जातिको नाश नाही, मिथ्यात्वरूप जातिको नाश, सम्यग्दर्शन उत्पत्ति-पर्यंत,यह तौ ज्ञान गुणको निर्णय भयो । अब चारित्र गुणको ब्यौरौ कहै हैं, संकलेस
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