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वनारसीविलासः १९९
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छत्तीससौ बलवंत पायक, अधिक पैंतालीस। सो है बरूथनि कटक दुर्द्धर, चटक सुन्दर दीस॥ १०॥
दंड-रोला। कुंजर दोय हजार एक सौ असी सात गनि । जेते गन तेते प्रमान स्थराज रहे बनि ॥ नवसौ पैंतिस दशहजार पायक प्रचंड वल। पैंसठसै इकसठ तुरंग यह दंड नाम दल ॥ ११ ॥
अक्षौहिणी-उप्पय। गज इकवीस हजार, आठ सौ सत्तर गज्जहिं । रथ इकबीस हजार, आठ सौ सचर सजहिं ॥
एक लाख अरु नवहजार नर सुभट सुभायक । ॐ तिस ऊपर तीनसौ अधिक पंचास सुपायक ।।
सोहत तुरंग पैंसठ सहस, छसौ अधिक दश और लिय । इहिविधि अभंग चतुरंग दल, अक्षौहिणी प्रमाण किय ॥१२॥
इति नवसेना विधान.
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अथ नाटकसमयसारसिद्धान्तके पाठान्तर कलशोंका भाषानुवाद.
मनहर। प्रथम अज्ञानी जीव कहै मैं सदीव एक,
दूसरों न और मैं ही करता करमको ।