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जैनग्रन्थरत्नाकर
सेना । चौपाई, नव तुरंग रथ तीन सुभायक । हस्ती तीन पंचदश पायक । वल चतुरंग और नहिं लेन । यह परवान कहावै सेन ॥ ५॥
सेनामुख ।
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सत्ताइस घोड़े नव हाथी । पैंतालिस पायकनर साथी । नवरथ सहित कटक जो होई । दल सेनामुख कहिये सोई ६
अनीकनी। । मत्त मतङ्ग सात अरु बीस । पवन वेग रथ सत्ताईस । अनुग एकसौ पैंतिस ठीक । हय इक्यासी सहित अनीकाखा
वाहिनी ।भाभानक छन्द। इक्यासी गजराज घोरघन गाजने ।
इक्यासी परमान महारथ राजने ॥ तीन अधिक चालीस तुरंगम दोयसो। ____ अनुग चारसौंपंच वाहिनी होय सो ॥ ८॥
___ चमू । गीता छन्द । गज दोयसैतेताल रथवर, दोयसौ तेताल। है सातसो उन्तीस परमित, जातिवन्त रसाल ॥ जह सुमट बारह सौ सुमायक, अधिक दश अरु पंच। सो चमूदल चतुरंग शोमित, सहित नर तिरजंच ॥ ९॥
विरूथिनी। रथ सातसै उनतीस कुंजर, सातसै उनतीस । हय एक विंशति सै सतासी, चपल उन्नत सीस ॥
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