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बनारसीविलासः
कलश-छप्पय । हीर हिमालय हंस, कुन्द शरदन निशाकर । कीर्तिकान्तिविस्तार, सार गुणगणरत्नाकर ॥ दुःकृति संतति धाम, कामविद्वेषिविदारण | मानमतंगजसिंह, मोहतरुदलन सुवारण ॥ श्रीशान्तिदेव जय जितमदन, वानारसि वन्दत चरण । | भवतापहारिहिमकर वदन, शान्तिदेव जय जितकरण ॥ ११॥
. इति श्रीशान्तिनाथ निनस्तुति.
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अथ नवसेनाविधान लिख्यते.
वेसरी इन्द। प्रथमहिं पत्ति नाम दल लेन । तासों त्रिगुण कहावै सेन ॥ सेन त्रिगुण सेनामुख ठीक । सेनामुखसों त्रिगुण अनीक ॥१॥ कीचे त्रिगुण वाहिनी सोइ । वाहनि त्रिगुण चमूदल होइ ॥ त्रिगुण वरूथनि दल परचंड। तासों त्रिगुण कहावै दंड ॥२॥
दोहा। दंड कटक दशगुण करहु, तब अछौहिणी जान ।। हयगय रथ पायक सहित, ये तब कटक बखान ॥ ३॥
पत्ति। एक मतंगज एक स्थ, तीन तुरंग प्रधान । सुमट पंच पायक सहित, पत्ति कटक परवान ॥ ४ ॥
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