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बनारसीविलासः
statutekokutstakeketstrekettatutekukukukuttatutatukutakekat.krkutekutekekuttikkan
जो निश्चय गुण जानक, करै शुद्ध व्यवहार । . जीत सेना मोहकी, सो क्षत्री भुजमार ॥२॥ जो जानै व्यवहार नय, ढ व्यवहारी होय । शुभ करणीसों रम रहै, वैश्य कहावै सोय ॥३॥ जो मिथ्यामत आदरै, रागद्वेषकी खान । विनविवेक करणी करै, शूद्रवर्ण सो जान ॥ १॥ चार भेद करतूतिसों, ऊंच नीच कुलनाम । और वर्णसंकर सबै, जे मिश्रित परिणाम ॥ ५ ॥ . इति चातुर्वण,
अथ अजितनाथजीके छंद. गोयमगणहरपय नमो, सुमरि सुगुरु रविचन्द ।। सरसुति देवि प्रसादलहि, गाऊं अजित जिनन्द ॥ १ ॥
छन्द. श्रीअवघ्यापुर देश सुहायाजी। .
राज तह जितशत्रू रायाजी ॥ राया सुधर्म निधान सुन्दर, देवि विजया तसु धेरै । तसु उदर विजय विमान सुरवर, स्वप्न सूचित अवतरै ॥ तब जन्म उत्सव करहिं वासव, मधर घनि गावहिं सुरी। आनन्द त्रिभुवन जन वनारसि, धन्य श्रीअवघ्यापुरी ॥२॥
महियल राजिउ अजित जिनंदानी। गज वर लच्छन निर्मल चंदानी ॥ ATMA
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