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जैनग्रन्थरत्नाकरे
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बौद्धमत । देव बुद्ध गुरु पाधड़ी, जगत वस्तु छिन औष। शून्यवाद आगम भजे, चारवाक मत वौध ॥ ३ ॥
वेदान्तमत्त । देव ब्रह्म अद्वैत जग, गुरु वैरागी भेष। ' वेद ग्रन्थ निश्चय धरम, मत वेदान्तविशेष ॥ ४ ॥
न्यायमत। देव जगतकरता पुरुष, गुरु सन्यासी होय । न्याय ग्रन्थ उद्यम घरम, नैयायिक मत सोय ॥ ५ ॥
मीमासकमत। देव अलख दरवेश गुरु, मार्ने कर्म गिरंथ । धर्म पूर्वकृतफलउदय, यह मीमांसक पंथ ॥ ६॥
जैनमत। देव तीर्थकर गुरु यती, आगम केवलि वैन । धर्म अनन्त नयातमक, जो जानै सो जैन ॥ ७ ॥
ए छहमत छै भेदसों, भये छूट कछु और। १ प्रतिषोडस पाखंडसों, दशा छ्यानवे और ॥ ८॥
___ इति षट्दर्शनाष्टक.
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अथ चातुर्वर्ण लिख्यते.
जो निश्चय मारग गहै, रहै ब्रह्म गुणलीन । ब्रह्मदृष्टि सुख अनुभवै, सो ब्राह्मणः परवीन ॥ १ ॥
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