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बनारसीविलास
विधि निषेध जाने नहीं, हित अनहित नहिं सूझ ।।
विषयमगन तन लीनता, यहै मूढ़की बूझ ॥३॥ जो जिनभाषित सरदहै, मम संशय सत्र खोय ।
समकितवंत असंजमी, अघम विचक्षण सोय || वैरागी त्यागी दमी, स्वपर विवेकी होय । __देशसंजमी संजमी, मध्यम पंडित दोय ॥ ५ ॥ अप्रमाद गुण थानसों, क्षीणमोहों दौर ।
श्रेणिधारणा जो धेरै, सो पंडित शिरमौर ॥ ६ ॥ जो केवल पढ़ आचर, चढि सयोगिगुणथान ।
सो जंगम परमातमा, भववासी भगवान ॥ ७ ॥ लिहिंपदमें सवपद मगन, ज्यों जलमे जल बुन्द ।
सो अविचल परमातमा, निराकार निरदन्द ॥ ८॥
अति अवस्थाटक,
. अथ षट्दर्शनाष्टक लिख्यते. . शिवमत बौद्ध रु वेदमत, नैयायिक मतदक्ष । मीमांसकमत जैनमत, पटदर्शन परतक्ष ॥ १ ॥
शैवमत । देव रुद्र जोगी युगुरु, आगम शिवमुख भाख । गने कालपरगति घरम, यह शिवमतकी साख ॥२॥