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बनारसीविलासः
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दशमी दशदिशिसों मन मोरै । दश माणनसों नाता तोरै ॥ * दशविधि दान अभ्यंतर साथै दशलच्छण मुनिधर्म अराधै १० ग्यारस ग्यारह प्रकृति विनाशै ग्यारह प्रतिमापद परकाश ॥ ग्यारह रुद्र कुलिंग वखान (ग्यारह विथा जोग जिन माने ११ वारस बारह विरति बढ़ावै। वारह विधि तपसों तन तावै ॥ वारहभेद भावना मावै। वारह अंग जिनागम गावै ॥ १२ ॥ तेरस तेरह क्रिया संभाले । तेरह विघन कोठिया टालै ॥ तेरविधि संजम अवधारै। तेरह थानक जीव विचारै ॥१३॥ * चौदश चौदह विद्या माने । चौदह गुणथानक पहिचाने ॥ में चौदह मारगना मन आने । चौदहरज्जु लोक परवाने ॥१॥
पन्द्रस पन्द्रह तिथि गनिलीजे। पन्द्रह पात्र परखि घन दीजा पन्द्रह जोगरहित जो धरणी ।सो घट शून्य अमावस वरणी १५ ।। पूनों पूरण ब्रह्मविलासी । पूर गुण पूरण परगासी ॥ पूरण प्रभुता पूरणमासी । कहै साधु तुलसी बनवासी ॥१६॥
इति पोडसतिथिका.
भRktik-ketantratakrkutekikanikakaitikatni.kekuttitutkukunkit-kakkakakakiati
अथ तेरह काठिया लिख्यते. ... जेवटपार वाटमें, करहिं उपद्रव जोर। तिन्हें देश गुजरातमें, कहहि काठियांचोर ॥ १ ॥
१ लुटेरे.
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निगमकवान
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