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बनारसीविलासः
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दया मिठाई रसभरी हो, तप मेवा परधान । शील सलिल अति सीयलो हो, संजम नागर पान |
भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ १३ ॥ गुपति अंग परगासिये हो, यह निलजता रीति। अकथ कथा मुखमाखिये हो, यह गारी निरनीति ॥
भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ १४ ॥ उद्धत गुण रशिया मिले हो, अमल विमल रसप्रेम । सुरत तरंगमहँ छकि रहे हो, मनसा वाचा नेम ||
____ भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ १५॥ परम ज्योति परगट भई हो, लगी होलिका आग। आठ काठ सब जरि बुझे हो, गई तताई माग ||
मला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ १६ ॥ प्रकृति पचासी लगि रही हो, भस लेख है सोय । न्हाय धोय उज्ज्वल भये हो, फिर तहँ खेल न कोय ॥
मला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ १७ ॥ सहज शक्ति गुण खेलिये हो, चेत वनारसिदास। सगे सखा ऐसें कहै हो, मिटै मोहदधि फास ॥
भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ १८॥ इति अध्यातमधमार.
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