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बनारसीविलासः
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१५७
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मालिम उतर जहाजसों, करै दीप को दौर ।
तहां न जल न जहाज गति, नहिं करनी कछु औरा॥१३॥ मालिमकी कालिममिटी, मालिम दीप न दोय । यह भवसिन्धुचतुर्दशी, मुनिचतुर्दशी होय ॥ १४ ॥
इति सिन्धुचतुर्दशी. अथ अध्यातम फाग लिख्यते. अध्यातम विन क्यों पाइये हो, परमपुरुषको रूप। अघट अंग घट मिल रह्यो हो, महिमा अगम अनूप ।।
__ भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥१॥ विषम विरष पूरो भयो हो, आयो सहज वसंत। प्रगटी सुरुचि सुगंधिता हो, मन मधुकर मयमंत ।।
भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ २ ॥ सुमति कोकिला गह गही हो, बही अपूरब वाट। भरम कुहर बादरफटे हो, घट जाडो जड़ ताउ ।।
भला अध्यातमविन क्यों पाइये मायारजनी लघु मई हो, समरस दिवशशिजीत । मोहर्पककी थिति घटी हो, संशय शिशिर व्यतीत ॥
___ भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ ४ ॥ शुम दल पल्लव लहलहे हो, होहिं अशुभ पतझार । मलिन विषय रति मालती हो, विरति वेलिविस्तार ॥
भला अध्यातमविन क्यों पाइये ॥ ५ ॥
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