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________________ १५६ जैनमन्थरलाकरे मनजहाज घटमें प्रगट, भवसमुद्र घटनाहिं । मूरख मर्म न जानहीं, बाहिर खोजन जाहिं ॥ ३ ॥ मूरखहूके घटविषै, जलजहाज अरु पौन । गमुद्रित मालीम तह, लखे सँभारे कौन ? ॥ ४ ॥ कर्मसमुद्र विभाव जल, विषयकषाय तरंग | चडवागनि तृष्णा प्रवल, ममता धुनि सरवंग ॥ ५ ॥ भरमभँवर तामें फिरै, मनजहाज चहुं और । गिरै खिरै वृडै तिरै, उदय पचनके जोर ॥ ६ ॥ जब चेतन मालिम जगै, लखै विपाक नजून । डारै समता श्रृंखला, थकै मँवरकी घूम ॥ ७ ॥ मालिम सहज समुद्रको, जानै सब विरतंत । शुभोपयोग तह रत्न सम, अशुभ भाव जलजंत ॥८॥ जन्तु देख नहि भय करै, रत्न देख उच्छाह । करै गमन शिवदीपको, यह मालिमकी चाह ॥ ९ ॥ दिशि परखै गुणजंत्रसों, फेरै शकति सुखान । धरै साथ शिवदीपमुख, वादवान शुभध्यान ॥ १० ॥ चहै शुद्ध उद्धत पवन, गहै क्षिपक दिशिलीक । लहै खबर शिवदीपकी, रहे दृष्टिगत ठीक ॥ ११ ॥ मनजहाज इहिविधि चलै, गेहै सिंधुजलवाट । आवै निज संपतिनिकट, पावै केवल घाट ॥ १२ ॥ १ कहै ऐसाभी पाठ हैं.
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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