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___ बनारसीविलासः १५३ ।
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अथ शिवपच्चीसी लिख्यते.
दोहा। ब्रह्मविलास विकाशधर, चिदानन्द गुणठान ।
बन्दों सिद्धसमाधिमय, शिवस्वरूप भगवान ॥ १॥ मोह महातम नाशिनी, ज्ञान उदधिकी सीव । ___ बन्दों जगतविकाशनी, शिवमहिमा शिवनींव ॥ २॥
चौपाई। शिवस्वरूप भगवान अवाची । शिवमहिमाअनुभवमति सांची शिवमहिमा जाके घट भासी । सो शिवरूप हुवा अविनासी ३ जीव और शिव और न होई । सोई जीववस्तु शिव सोई॥ जीव नाम कहिये व्यवहारी । शिवस्वरूप निहचै गुणधारी ४ करै जीव जब शिवकी पूजा । नामभेदत होय न दूजा ॥ विधि विधानसों पूजा ठाने । तब शिव आप आपको जानै ५ तन मंडप मनसा जहँ वेदी। शुभलेश्या गह सहज सफेदी आतमरुचि कुंडली वखानी । तहां जलहरी गुरुकी वानी ६ भावलिंग सो मूरति थापी । जो उपाधि सो सदा अव्यापी॥ निर्गुणरूप निरंजन देवा । सगुणस्वरूप करै विधिसेवा ॥ ७ ॥ समरस जल अमिषेक करावै। उपशम रसचन्दन घसि लावै ॥ सहजानन्द पुष्प उपजावै । गुणगर्मित जयमाल चढावै ॥८॥
ज्ञानदीपकी शिखा संवारै । स्याद्वाद घंटा झुनकारै ॥ 3 अगम अध्यातम चौंर ढुलावै । क्षायक धूप स्वरूप जगावै ॥९॥
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