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totrketituttituttitut.ketituttekstitutet-trketikotukkuttituttituti.kekat.kittitutetreet
११५४ जैनग्रन्थरलाकरे निहचै दान अर्यविधि होवै । सहजशील गुण अक्षत दोवै
तप नेवज काढे रस पागै ! विमलभाव फल राम्खड़ आगे १० - जो ऐसी पूजा करै, ध्यानमगन शिवलीन !
शिवस्वरूप जगमें रहै, सो साधक परवीन ॥ ११ ॥ * सो परवीन मुनीश्वर सोई । शिवमुद्रा मंडित जो होई॥
सुरसरिता करुणारसवाणी। युमति गौरि अर्द्धन वखानी॥१२॥ त्रिगुणभेद जहँ नयन विशेखा। विमलभावसमकित शशिलेखा -
सुगुरु शीख सिंगी उर बांधै । नयविवहार बाघम्बर कां ॥१३॥ * कवहूं तन कैलाश फलोलै। कबहुं विवेकवैल चढ़ डोले ॥
रुंडमाल परिणाम त्रिभंगी। मनसा चक्र फिरै सरवंगी ॥१४॥ * शक्ति विभूति अंगछवि छाजै ।तीन गुपति तिरशूल विराजै । ॐ कंठ विभाव विषम विष सोहै। महामोह विपहर नहिं पोहै १५
संजम जटा सहज सुख भोगी। निहचैरूप दिगम्बर जोगी | ॐ ब्रह्म समाथिध्यान गृह साजे । तहां अनाहत डमरू बाजै॥१६॥
पंच भेद शुभज्ञान गुण, पंच बदन परधान ।
ग्यारह प्रतिमा साधतें, ग्यारह रुद्र समान ॥ १७ ॥ मंगल करन मोखपद ज्ञाता। यात शंकर नाम विख्याता ॥ जब मिथ्यामत तिमर विनाशै। अंधकहरण नाम परकाशै १८ ईश महेश अखयनिधिस्वामी। सर्व नाम जग अंतरजामी ॥ त्रिभुवन त्याग रमै शिवठामा। कहिये त्रिपुरहरण तव नामा १९ ,
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