________________
ARAM
ww.ra
いちっさいれいさっちっちーさっさっさっさっさったっては、さっきのさーたーまーまーさっさっとたったとはいたっての大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大・大迫
बनारसीविलासः ११७, घृतघटपूरित लोकम, धर्म अधर्म अकास।
काल जीव पुद्गल सहित, छहों दर्वको वास ॥ २ ॥ छहों दरव न्यारे सदा, मिले न काहू कोय । __छीर नीर ज्यों मिल रहे, चेतन पुट्ठल दोय ॥ ३ ॥ चेतन पुदल यो मिलें, ज्यों तिहमें खलि नल।
प्रगट एकसे देखिये, यह अनादिको खेल ॥ १ ॥ वह बाके रससों स्मै, वह वासों लपटाय ।
चुम्बक करपै लोहको, लोह लगै तिहँ धाय ॥ ५ ॥ जड़ परगट चेतन गुपत, द्विविधा लबै न कोय। ____ यह दुविधा सोई लखे, जो सुविचक्षण होय ॥ ६ ॥
ज्यों सुवास फल फूलमें, दही दूधमें घीव ! ___ पावक काठ पपाणमें, त्यो शरीरमें जीव ॥ ७ ॥
कर्मवरूपी कर्ममें, घटाकार घटमाहिं । ___ गुणप्रदेश प्रच्छन्न सब, यात परगट नाहि ॥ ८ ॥ सहज शुद्ध चेतन वसे, भावक्रमकी ओट।
द्रव्यकर्म नोकर्मसों, बधी पिंडकी पोट ॥९॥ ज्ञानरूप भगवान शिव, भावरुन चित गर्ने ।
द्रव्यकर्म तनकारमन, यह शरीर नोरम ॥10॥ ज्या कोटीमें धान थो, चमी माहि फनीन ।
चमी धोय कन राषिय, मोटी धाप मीच ॥ ११ ॥
SEVALANATAPAINMEAirtantrinters-IATNANABRAistririntinutritE-IIIHA
%3