________________
S
-ANVR.
बनारसीविलासः १३९ * मव थिति जिनकी घटगई, तिनको यह टपदेश । ___ कहत वनारसिदास यों, मूह न समुझे लेग ॥ २१ ॥
इति श्रीमोईपी. अथ कर्मछत्तीसी लिख्यते.
दोहा। परम निरंजन परमगुरु, परमपुरुष परधान । बन्दहुं परमसमाविगत, मयभंजन भगवान ॥ १॥ जिनवाणी परमाण कर, सुगुरु शीख मन आन । का जीव अरु कर्मको, निर्णय कहाँ बसान ॥२॥ अगम अनंत अलोकनभ, तामें लोक अकाश ।। सदाकाल ताके उदर, जीव अजीव निवास ॥ ३ ॥ जीव द्रव्यको द्वै दशा, संसारी अरु सिद्ध। पंच विकल्पअजीब के, अखय अनादि असिद्ध ॥ ४ ॥ गगन, काल, पुद्गल, घरम, अरु अधर्म अभियान । । अब कछु पुद्गल द्रव्यको, कहीं विशेष विधान ॥ ५ ॥ चरमदृष्टिसों प्रगट है, पुद्गल द्रव्य अनंत । जड़ लक्षण निर्जीव दल, सी मूरतिवंत ॥६॥ जो त्रिभुवन थिति देखिये, थिर जंगम आकार। सो पुट्टल परवानको, है अनादि पितार ॥ ७ ॥
PEntituteketrintuttituttitutitutikterarutiktat kuttekitnukattitutntitatutetitution
attornantetrictAttAtaratmak.intetntrtattatrtarted-entrtARIAssist