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putekakakaktiktatek katthoutatitiststairituttitis ११३८ जैनग्रन्थरताकरे
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उद्धत जलपरवाहमें, जौं भौंर बुलल्ला । त्यों इस कर्म विपाकदे, विच ऊंचा खल्ला ॥ १८ ॥ दुहुंदा अथिर स्वभाव है, नहिं कोई अटल्ला । ऊंच नीच इक सम फरै, कलिकाल पटल्ला ॥ अध ऊरघ ऊरध अधो, थिति उथल पुथल्ला। अरहट हार विहारमें, क्या ऊपर तल्ला ॥ १९॥ पाया देवशरीरज्यों, नलनीर उछला। भव पूरण कर दहि पया, फिर जल ज्यों ढल्ला पुण्य पाप विच खेद है, यह भेद न भल्ला । ज्ञान क्रिया निरदोष है, जहँ मोख महल्ला ॥ २० ॥ वतनु तु साडा मोहमैं, जौं रोह रुहल्ला । थिति प्रवाण तुझ नो भया, गुरुज्ञान दुहल्ला ॥ अब घट अंतर घटगई, भव भीर चुहल्ला । परम चाह परगट भई, शिव राह सहल्ला ॥ २१ ॥ ज्ञान दिवाकर ऊगियो, मति किरण प्रवल्ला । है शत खंड बिहंडिया, भ्रम तिमर पटल्ला ॥ सत्य प्रताप मंजिया, दुर्गती दुहल्ला । अंगि अंगारे दज्झिया, जौं तूल पहल्ला ॥ २२ ॥
दोहा। यह सतगुरुदी देशना, कर आसव दीवाड़ि। __ लद्धी पैड़ि मोखदी, करम कपाट उघाडि ॥ २३ ॥
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