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144 MAHARALA LADAWASANAMA
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छुधा वेदनी उपशम हेत । रस अनरस समभाव समेत ॥ एकबार लघु भोजन करै । सो मुनि मुकति पंथ पगधेरै २९ देह सहारौ साधन मोप । तबलों उचित कायबल पोय ॥ यह विचार थिति लेहिं अहार । सो मुनि परम धरम धनधार३० जहँ जहँ नवदुवारमलपात । तहँ तहँ अमित जीव उतपात ॥ यह लख तजहिं दंतवन काज । सो शिवपथसाधक ऋपिराज३१ /
ये अठ्ठाविस मूल गुण, जो पालहिं निरदोष । सो मुनि कहत वनारसी, पावै अविचल मोय ।। ३२ ॥
इति साधुवन्दना
अथ मोक्षपैडी लिख्यते.
दोहा। इक्क समय रुचिवंतनो, गुरु अक्खै सुनमल्ल । जो तुझ अंदरचेतना, वहै तुसाड़ी अल्ल ॥ १॥ ए जिनवचन सुहावने, सुन चतुर छयल्ला । अक्खै रोचकशिक्खनो, गुरु दीनदयल्ला । इस बुझै वुध लहलहै, नहिं रहै मयल्ला । इसदा मरम न जानई, सो द्विपद वयल्ला ॥२॥ जिसदौ गिरदा पेचसों, हिरदा कलमल्ला । जिसना संसै तिमिरसों, सूझै झलमल्ला ।।
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