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बनारसीविलासः
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अथ साधुवन्दना लिख्यते.
दोहा। श्रीजिनमापित भारती, सुमरि आन मुखपाठ । कहीं मूल गुण साधुके, परमित विंशतिआठ ॥ १ ॥ पंचमहावत आदरन, समति पंच परकार ।
प्रवल पंच इन्द्रिय विजय, पट अवशिक आचार ॥२॥ * भूमिशयन मंजनतजन, वसनत्याग कचलोच । एकवार लघुअसन थिति असन दंतवन मोच ॥ ३॥
चौपाई। थावर जन्तु पंच परकार । चार भेद जंगम तन धार । जो सब जीवनको रखपाल । सो सुसाधु बन्दहुं तिरकाल |2|
संतत सत्य वचन मुख कहै । अथवा मानविरत पर है। * मृपावाद नहिं बोले रती । सो जिन मारग सांचा जती ॥५॥
कौड़ी आदि रतन परजंत । घटित अयट धनभेद अनंत ॥ भी दत्त अदत्त न फरस जोय । तारण तरण नुनीश्वर सोय ॥६॥
पशु पंखी नर दानव देव । इत्यादिक रमणी रति सेव ॥ भी तबहिं निरन्तर मदन विकार । सो मुनि नमहुँ जगत हिनफार
द्विविधि परिग्रह दशविधि जान । संख असंन्ख अनन्त बन्नान : सकल संगतज होय निराश सो मुनि लेह मोक्ष पदवास ॥ ८ ॥
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राईभोजन करना.
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