________________
MOT.COCL:
-
-
Mi....
.
*-int-tit-trt.tt-t.t-trt-trintuteket--kukkuttrkettrint.titutat krt.ketrint-t
बनारसीविलासः अंतराय अष्टम वटमार । सो है भद पंच परकार ॥ * अन्तराय तरुकी . डार । निहचे एक एक वियहार ॥ १२ ॥ * कहाँ प्रथम निहचकी यात । जान्नु ब्दय आतमगुण धान ॥ परगुन त्याग होहि नहिं जहां । दान अन्तराब कहि तहाँ १३ आतमतत्त्वलामकी हान । लामअन्तराई सो जान ॥ जबलों आतमभोग न होय । भोगअन्तराई है सोय ॥ ११ ॥ बारबार न जगे उपयोग । सो हैं अन्तराय उपभोग ॥ में अष्टकर्मको कर न जुदा । वीरज अन्तरायका उदा ॥ १५ ॥
निहचे कहीं पंच परकार । अब सुन अन्तगय विवहार ।। * छत्तीवस्तु कछु देय न सके । दान अन्तराई बल ढके ॥१६॥
उद्यम करै न संपति होय । लाभ अन्तराई है सोय ॥ विषयमोग सामग्री छती । जीव न भोग कर सके रती ॥१७॥
रोग होय के भोग न जुरै । भोगअन्तरायवल और में एक भोगसामग्री सार । ताको भोग जु वारंवार ॥ १८ ॥ * कीजे सो कहिये उपभोग । ताहू को न जुरे संजोग ॥ ॐ यह उपभोगघातकी कथा । वीरजअन्तराय मुन जथा ॥१॥ शक्ति अनंत जीवकी कही । सो जगमानाहिं दब रही ॥ जगम शक्ति कर्मआधीन ! कवई सबल कबहुं मनहीन ॥२०॥ तनइन्द्रियबल फुरै न जहां । वीरजअन्तराय है, तहां !! ताते जगतदशा परवान । नय राखी भानी भगवान ॥२१॥
.N
May- - - -
- - -Mumr MYANTSTATUTNPATH.414TR.. - - -
-
-
Pan . -
10
-
-
-