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१२० जैनग्रन्थरत्नाकरे
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दोहा । ये वरणी व्यवहार की, अन्तराय विधि पंच ॥ अन्तर वहिर विचारतें, । संशय रहै न रंच ॥ २२ ॥ स्यादवाद जिनके वचन, । जो मानै परमान। सो जाने सव नयदशा, । और न कोऊ जान ॥ २३ ॥ सर्वधातियाकी प्रकृति, । देशघातियावान ॥
बाकी और अघातिया, । ते सब कहों वखान ॥ २४ ॥ । केवलज्ञानावरणी वान । केवलदरशआवरण जान ॥
निद्रा पंच चौकरी तीन । प्रकृती द्वादश लीजे चीन ॥ २५॥ - अनंतबंध अप्रत्याख्यान । प्रत्याखान चौक त्रिक जान ॥ सब मिथ्या मिश्रित मिथ्यात । ए इकचीस प्रकृति सव घात २६
दोहा। सर्वघातियाकी कहीं । विंशति एक वखान । अव वरणों छबीसविधि । देशघातिया वान ॥२७॥
चौपाई। केवलज्ञानावरणी विना । बाकी चार आवरण गिना ।। केवलदरशआवरण छोड़ । वाकी तीनों लीजे जोड़ ॥ २८ ॥ चारभेद संज्वलनकषाय । नवविधि नोकषाय समुदाय ॥ समयप्रकृति मिथ्यात वखान । अन्तरायकी पांचों वाना॥२९॥ ए छब्बीस प्रकृति सब भई । देशघातियाकी वरनई ॥ बाकी रही एकसौ एक । ते सब कही घाति अतिरेक ॥३०॥
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