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___ बनारसीविलासः ११७ भर रहे लोकनभमें सदीव । ज्यों घामाहिं भर रहे घीव ॥ सूक्षम अरु चादर दोय सास्त्र । पुनि नित्य अनित्य दुमंद भाख ९३ . जो गोलकरूपी पंचधाम । अंडर खंडर इत्यादि नाम ॥ ते सातनरकके हेट जान । पुनि सकललोकनभमें वसान ॥९॥
दोहा। एक निगोद शरीरमें, जीव अनंत अपार । धेरै जन्म सब एकठे, मरहिं एक ही बार ॥ ९५ ॥ मरण अठारह वार कर, जनम अठारह बेव । एक स्वास उस्वासमें, यह निगोदकी टेव ॥ १६ ॥ एक निगोदशरीरम, एते जीव वखान । तीन कालके सिद्ध सब, एक अंश परिमान ॥ ९७ ॥
बढ़े न सिद्ध अनंतता, घटै न राशि निगोद । ___ जैसेके तसे रहे, यह जिनवचनविनोद ॥ २८ ॥
तातें वात निगोदकी, कह कहाँलो कोय । साधारण प्रकृतीउदय, जिय निगोदिया होय ॥ ९९ ॥
यह साधारण प्रकृतिलों, वरणी चौदह साख । * बाकी चौदह जे रहें, ते वरणों मुख भात ॥ १०० ॥
परिछन्द । . थिरप्रकृति उदयथिरता अभंग । अन्चिर उदोतलों अधिर अंग शुभप्रकृतिउदय शुभरीति सर्व । जहँ अशुभउदय तह अनुभव सौभागप्रकृति जाक उदोत । सो प्राणी सबको इष्ट होन। है दुर्भागप्रकृतिके उदय जीव ! सबको अनिष्ट लोग सदीय ।।२।। REETITION
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