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बनारसीविलासः १०९ निद्वानिद्रा उदय स्वकीव । पलक उघाट सकै नहिं जीय ॥
प्रचलापचला जावतकाल । चंचल अंग बहै मुख लाल १६ * निद्रा उदय जीव दुख भरे । उठ चालै बैठे गिरि परे ॥ रहै आंख प्रचलासों घुली । आधी मुद्रित आधी खुली १७,
सोवतमाहिं सुरति कछु रहै । वारवार लघु निद्रा गई ॥ - इति दर्शनावरणि नवधार । कहों वेदनी द्वयपरकार ॥ १८॥ ६
दोहा। साता करम उदोतसों, जीव विषयमुख बेद। करम असाताके उदय, जिय वेदै दुख खेद ॥ १९ ॥
चौपाई। अब मोहिनी दुविधिगुरुमनै । इक दरशन इक चारित हुन । दर्शनमोह तीन विधि दीस । चारितमोह विधान पचीस २० प्रथम मिथ्यातमोहकी दौर । जिय सरदहै औरकी और ॥ दूजी मिश्रमोड़की चाल । सत्य असत्य गहें समकाल ॥२१॥ समकितमोह तीसरी दशा । करै मलिन समरितकी रसा अव कपाय सोलहविधि कहाँ। नोकपाय नवविधि सरदहों २२ : प्रथमकपाय कहावै कोप । जाके उदय छिमागुण लोप । द्वितियकपाय मान परचंड । विनय विनाश कर शतखटा२३॥ तीजी मायारूप कपाय । जाके उदय सरलता जाय ॥ लोभकपाय चतुर्थमभेद । जासु उदय संतोष उछेद ॥ २४ ॥
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