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बनारसी विलासः
दोहा।
ये बासठ विधि जीबके, तनसम्बन्धी भाव | तज तनवृद्धि, बनारसी, कीजे मोक्ष उपाव ॥ २८ ॥ इति बासर मार्गणा विधान.
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अथ कर्म प्रकृतिविधान लिख्यते.
वस्तुछन्द |
परमशंकर परमशंकर, परमभगवान
परवा अनादि शिव, अज अनंत गणपति विनायक | परमेश्वर परमगुरु, परमपंथ उपदेशदायक ॥
इत्यादिक बहु नाम घर, जगतबंध जिनराज । जिनके चरण बनारसी, बंदै निजहितकाज ॥ १ ॥ दोहा ।
नमो केबली बचन, नम आतमाराम ।
कहीं कर्मकी प्रकृति सव, भिन्न भिन्न पद नाम ॥ २ ॥ चौपाई. (१५ मात्रा)
एकहि करम आठविधि दीस । प्रकृति एकसी अड़तालीस || तिनके नाम भेद विस्तार | वरणहुं जिनवाणी अनुसार ॥ ३ ॥ प्रथमकर्म ज्ञानावरणीय | जिन सत्र जीव अज्ञानी की ॥ द्वितिय दर्शनावरण पहार । जाकी ओट जलन करता||१|| तीजा कर्म वेदनी जान | तासों निराबाध गुणहान || चौथा महामोह जिन भनै । जो समकित थरु चारित ह || ५ ||
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