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________________ startsistertoist taist.tituttitutatistiane बनारसीविलासः n renorronmrimmmmmmm m m. .. rrrr... - .. kuttttitutiktatuttituttitakikuttttituttitutttttttttttttttta प्रथम असंजम रूप विशेष । देशसंचमी दूजो भेष | तीजो सामायिक मुखधाम । चौथा छेदउथापन नाम ॥ ७॥ पंचम पद परिहारि विशुद्धि । सूक्षम सांपराय पट बुद्धि ॥ जथाख्यात चारित सातमा ! सातों स्वांग धरै आतमा ॥ ८ ॥ भव्य अभव्य स्वांग घर दुधा । कर जीव जग नाटक मुधा ॥ अनहारक आहारी होय । नाचे जीव स्वांग घर दोय ॥९॥ कवहूं क्रोध अगनि लहलहै । कबहूं अष्ट महामद गहै ॥ कवई मायामयी सरूप । कवहूं मगन लोभ रसकूप ॥१०॥ चार कपाय चतुर्विध भेष । घर जिय नाटक कर विशेष ।। कहूं चक्षुदर्शनसों लखै । कहुं अचक्षुदर्शनसों चखे ॥११॥ कहूं अवधि दर्शन सु प्रयुंज । कहूं युकेवलदरशन पुंज ॥ धर दर्शन मारगणा चारि । नाटक नटै जीव संसारि ॥ १२॥ कुमतिज्ञान मिय्यामति लीन । कुश्श्रुति कुआगममें परवीन ॥ , धेरै विभंगा अवधि अबान । मुमति ज्ञान समकित परवान १३ : सुश्चतिज्ञान परमागम सुणे । अवधि ज्ञान परमारथ मुणे ॥ मनपर्जय जानहिं मनभेद । केवलज्ञान प्रगट सब वेद ॥१४॥ एही आठ ज्ञानके अंग । नचै जीव इनरूप रसंग ॥ * मनोजोगमय होय कदाचि । बोल वचन जोगसो राचि॥१५॥ कायजोगमय मगन स्वकीय । नाचे त्रिविधि जोग धर जीया ॐ सुरगति पाय करै सुखभोग । समसुखदुख नरगति संजोगारा बहुदुख अल्पमुखी तिरजच । नरक महादुन्न है सुख रच ॥ में चहुंगति जम्मन मरण कलेस । नटें जीव नानारसमेस ॥१॥ IISE.3.3.TRIT.I-L-I-III-I-IT.IT,
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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