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बनारसीविलासः
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समवसरनमहिं चौमुखि दीसे । चतुरानन कह जगत अनीस ॥ २ अक्षरविना वेदयुनि भासे । रचना रच गणधर परगास ४२ चारवेद कहिये तब सेती । द्वादशांगकी रचना गती ॥ जवधुनि सुनि अनंतता गहिये। तब प्रमु अनंतातमा कहिये १३:
आदिनाथआदीश्वर जोई । आदि अन्तविन कहिये सोई ॥ * करै जगत इनहींकी पूजा । ये ही ब्रह्म और नहिं दूजा ४४
जवलों जीव मृपामग दौरे । तबलों जाने ब्रह्मा औरै ॥ जब समकित नैननसों सूझ ब्रह्मा ऋषभदेव तव वझै ४५
दोहा। __ आदीश्वर ब्रह्मा भये, किये वेद जिन चार । नामभेद मतभेदसों, बढी जगतमें रार ॥ १६॥
ब्रह्मलोक कथनः-चौपाई। ने और उक्ति मेरे मन आवै । सांचीगत सबनको माये ॥ ब्रह्मा ब्रह्मलोकको वासी । सो वृत्तान्त कहाँ परकासी॥४७॥
कुलिया। 5 ऊपर सब सुरलोकके, ब्रह्मलोक अभिराम ।
सो सरवारयसिद्धि तमु, पंचानुत्तर नाम ।।
पंचानुत्तर नाम, थाम एका अवतारी । 1 तहां पूर्वभव बसे, ऋषमजिन समक्रितधारी ॥
ब्रह्मलोकसों चये, भये ब्रह्मा इहि भूपर । तात लोक कहान, देव ब्रह्मा सब ऊपर ॥ १८ ॥
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