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________________ E वनारसीविलासः पाई। से तेरह मनुके नाव जु आने । नाभिराय चौदहें बनाने ॥ मरुदेवी तिनकी वरनारी । शीलवंत सुंदरि सुकुमारी॥ २८ ॥ ताके गर्भ भये अवतारी । ऋपभदेवजिन समकितयारी । तीनज्ञान संयुक्त मुहाये । अगणित नाम जगतमें गाये ॥२॥ ऋपमदेव कथन: दोहा। Httitutntki.trkut.tit-krt.totakokutek-t-tutetnkrtaket.tituteketstotrkutekeket-titutekt.kitcteta ऋपभदेव जे जे दशा, घरी किये जे काम। ते ते पदगर्भित भये, प्रगट जगतमें नाम ॥ ३०॥ जे ब्रह्माके नाम सब, जगतमाहिं विख्यात ।। ते गुणसों करतूतिसों, ऋषभदेवकी बात ॥ ३१ ॥ चापाई। जनमत नाम भयो शुभवेला । आदिपुरुष अवतार अकेला ॥ * मातापिता नाम जब राखा। ऋषभकुमार जगत सब भाखा ३२ नाभि नाम राजाके जाये । नाभिकमलउत्पन्न कहाये ॥ इन्द्र नरेन्द्र करें जब सेवा। तब कहिये देवनको देवा ॥३३॥ arriatristot.statutitut-tetetstatutstatstorirst-to-thort-t-t. 11ststrtaintity वणव सम्प्रदाय कल्पना की है कि श्रीशगजीने जर पृथिवी राके पेट में रखली, तब प्रधाजीने धवनारे इन्हें इंद्रा वनसके पार से सोतेहुये मिले, तब इनके पेट में सन्देह किया. आगजीने जाने पेटनें । भई घुस जाने दिया और फिर मुह बंदकर निकलने नही दिया, तव प्रयानी , श्रीकृष्णकी नाभिमसे कमल उत्पन्न कर उसी नालने पृयिकाहन निकले तरसे नया नाभिकमलजन्यन्न कहलाये. - - - T 07 . -- - PATRENYATAN . . . . . YaFATTAry IYAL
SR No.010701
Book TitleBanarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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