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FESekkkkkkartat katstattatoketstatuttatretstatstate १९६ जैनग्रन्थरत्नाकरे
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ऐसे भद्रमानुष जुगलअवतारपाय,
करि करि भोग मरि मरि होहिं देवता ॥ २२ ॥ जिनके जनम माहिं मातपिता मर जाहिं,
व्यापै न वियोग दुख शोक नहिं धरना।। अपने अंगूठाको अमृतरसपान कर,
जिनको अपनो तन पर्द्धमान करना । अन्तकाल जिनको असातावेदनी न होय,
छींक आये अथवा जमाई आये मरना। जिनको शरीर खिर जाय ज्यों कपूर उड़े, ऐसो जिनवानीमें जुगलधर्म वरना ॥ २३ ॥
चौपाई। | जुगलधर्म जब लेय मरोरा । बाकी काल रहै कछु थोरा ॥ प्रगटहिं तहां चतुर्दशप्रानी । कुलकर नाम कहा- ज्ञानी ॥२४॥
सव सुजान सवकी गति नीकी । सव शंका मेटहिं सर्वजीकी। - होहिं विछिन्न कल्पतरु ज्योज्यों।कुलकर आगम भाषहिं त्योंत्यो।
दोहा। कयो सबनि भरि मरि जनम, हरि हरि भांति कहाव । धरि धरि तन मरि मरि गये, करि करि पूरण आव ॥२६॥ इहिविधि चवदह मैनु भये, कछु कछु अन्तरकाल । तीन ज्ञान संयुक्त सव, मति श्रति अवधि रसाल ॥२७॥
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१ कुलकर. २ जीवोंकी.