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बनारसीविलास.
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चौपाई। उपशम क्षिपक यथावत चारित ।
परकृत अनुमोदनकृतकारित ॥ द्विविधि त्रिविधि पनविधि आचारा । तेरह विधि सत्रह परकारा ॥ ११ ॥
दोहा। वरनन संख्य असंख्यविधि, तिनके भेद अनंत । सदाचार गुणकथन यह, वृतियवेद विरतंत ॥ १२ ॥
चतुर्थवेद यथाः-रूपक धनाक्षरी. जीव पुदगल धर्म, अधर्म आकाश काल,
येही छहों दरव, जगतके धरनहार । एक एक दरवमें, अनंत अनंत गुन, ___ अनंत अनंत परजायके करनहार ॥
एक एक दरवमें, शकति अनंत बस, ___ कोऊ न जनम धेरै कोऊ न मरनहार ।
निहचे निवेद कर्मभेद चौथेवेद माहि, ___वखाने सुगुरु मानै मोहको हरनहार ॥ १३ ॥
चौपाई। येही चारवेद जगमाहिं । सर्व अन्थ इनकी परछाहिं ।। 1 ज्यों ज्यों धरम भयो विच्छेद । त्यो त्यो गुप्त भये ये वेद १४
इस छन्दमें बत्तीसवर्ण लघु गुरुके नियमरहित होते हैं, आठ. आठ आठ, आठ मिलाकर एक चरणमें ३३ वर्ण होते हैं अन्तमें नियम लगी होता है.
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