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बनारसीविलासः wimmmmmmmmmmmmmmmmmmmm..
ब्रह्मानाम युगादिजिन, रूप चतुर्मुख धार । समवसरण मंडानमें, वेद वखान चार ॥ ४ ॥
घनाक्षरी। प्रथम पुनीत प्रथमानुयोगवेद जामें,
त्रेसठशलाका महापुरुषोंकी कथा है। दूजो वेद करणानुयोग बाके गरभमें,
वरनी अनादि लोकालोक थिति जथा है। चरणानुयोग वेद तीसरो प्रगट जामें, ___ मोखपंथकारण आचार सिंधु मथा है। चौथोवेद दरव्यानुयोग जामें दरवके, पटभेद करम उछेद सरवथा है ॥ ५॥
प्रथमवेद यथा:
पट्पद । तीर्थकर चौवीस, काय चौवीस मनुजतन । जिनमाता जिनपिता, सकल व्यालीसआठ गन ।। चक्रवति द्वादश प्रमान, एकादश शंकर । नव प्रतिहर नव वासुदेव, नव राम शुभंकर ।। कुलकर महन्त चवदह पुरुप, नव नारद इत्यादि नर । इनको चरित्र अरु गुणकथन, प्रथमवेद वह भेद घर ॥६॥
द्वितीयवेद यथाःअगम अनंत अलोक, अकृत अनिमित अखंड सभ। असंख्यातपरदेश, पुरुपआकार लोक नम ||
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