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९० जैनग्रन्थरलाकरे
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अथ वेदनिर्णयपंचासिका.
चूडामणि छन्द । जगतविलोचन जगताहत, जगतारण जग जाना ।
बन्दहुं जगचूडामणी, जगनायक परधाना ॥ नमहं ऋपभस्वामीप्रमुख, जिनचौवीस महन्ता । गुरूचरण चितराख मुख, कहूं वेदविरतन्ता ॥ १ ॥
मनहरण । (खड़ीबोली) केवलीकथितवेद अन्तर गुपत भये,
जिनके शवदमें अमृतरस चुवाहै। अव ऋगुवेद यजुर्वेद शाम अथर्वण, __इनहींका परभाव जगतमें हुवा है ॥ कहत वनारसी तथापि मैं कहूंगा कछु,
सही समझेंगे जिनका मिथ्यात मुवा है। मतवारो मूरख न मानै उपदेश जैसे, उलुवा न जाने किसिओर भानु उवा है ॥२॥
दोहा। कहहुं वेदपंचासिका, जिनवानी परमान । नर अजान जाने नहीं, जो जाने सो जान ॥ ३ ॥
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१ अन्य कवियोंने इसे मुक्तामणि लिखा है, १३ और १२ के विश्राम से इसमें २५ मात्रा होती हैं. दोहाके अन्त लघुवर्णको गुरु करदेनेसे यह छन्द बन जाता है.